Saturday 7 December 2013

अस्मिताओं का संकट

अस्मिताओं का संकट भारत कि सबसे प्रमुख समस्या है .भारत में पेशेवर राजनीति के विकसित न होने के पीछे भी उसकी अस्मितावादी सामुदायिक संरचना ही है .यह बिना विचार और आधार के ही राजनीतिज्ञों को समर्थक उपलब्ध कराती है .यद्यपि यह सच है कि भारतीय समाज पश्चिम की तरह व्यक्ति -केन्द्रित ईकाइयों वाला नहीं हो सकता और यह भी कि इसकी अंतिम ईकाई अब भी परिवार ही है .कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की विफलता और भारी भ्रष्टाचार के बावजूद इसकी स्थिरता का रहस्य इसका परिवारवाद ही है.यहाँ मेरा आशय नेताओं और अभिनेताओं के परिवारवाद से नहीं है ,उस परिवारवाद से है ,जो अंधों की उंगली पकडे और लंगड़ों को अपने कन्धों पर बिठाए हुए बिना किसी सरकारी सहायता के उसे ढोता दिखाई देता है . पारिवारिक संवेदनशीलता और दायित्वबोध के कारण ही  भारतीय नेतृत्वऔर उसका प्रशासन दुनिया की सबसे नक्कारा प्रजाति है .वे अत्यंत न्यूनतम सृजनशीलता के साथ मजे-मजे राज करते रहते हैं ......

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